महासमुन्द।अंचल के ग्राम बिरकोनी में मार्गशीर्ष मास की शुरुआत पूर्णिमा के बाद से प्रारम्भ हुई है।अंचल में इसे अगहन बृस्पति के नाम से माना जाता है।जिसमें महिलाएं इस बार पाँच गुरुवार को विधिविधान से लक्ष्मी विष्णु की पूजा कर दीपदान करती है।इसमें शंख पूजा का विशेष महत्व है।सनातम धर्म में बारह मास को एक एक नाम देकर सभी देवी देवताओं की आराधना की जा रही है।रामजानकी मंदिर आचार्य लक्ष्मीनारायण वैष्णव ने बताया कि धर्मशास्त्रों में मार्गशीर्ष के महीने का सम्बन्ध ज्योतिष के 27 नक्षत्रों में से एक मृगशिरा नक्षत्र से है इसमें भगवान श्री कृष्ण की पूजा उनके सभी स्वरूपो में की जाती है।इसमें घरो और मन्दिरो में शंख की पूजा की जाती है।पौराणिक कथा के अनुसार शंख की उतपत्ति सागर मंथन से हुआ शंख को देवी लक्ष्मी का भाई माना जाता है,इसकी पूजा करने के बाद लोग अपनी मनोकामनाओं को मांगते है,मन्दिरो और घरों में अक्षत ,हल्दी,फूल से पूजा कर शंख को वस्त्र धारण कराया जा रहा है।यह सुख समृध्दि का प्रतीक है।मार्गशीर्ष मास पर पाँच गुरुवार को लक्ष्मी और विष्णु की पूजा मन्दिरो और घरो में की जा रही है।कार्तिक पूर्णिमा के बाद लक्ष्मी जी पृथ्वि पर घर घर विराजित हुए थे।विवाहित महिलाएं बुधवार से ही घरों में चावल के लेप से रंगोली बना कर,माँ लक्ष्मी के आगमन का इंतिजार करती है।गुरुवार की सुबह ब्रम्हा मुहूर्त में सूर्य उदय से पहले आंवले फल,पंचमेवा,खीर पूड़ी का भोग लगती है।इसके बाद शाम को विसर्जन कर व्रत खोलती है।और शाम को मोहल्ले में चना दाल,खीर पूड़ी का प्रसाद वितरित करती है।इसमें दीपावली जैसी रौनक देखने को मिलता हैं।आज से जून तक विवाह के लिए शुभ मुहूर्त है,जो दिसम्बर से जून तक रहेगा।ग्रामीण अंचल में विवाह के लिए वार वधु की आवागमन शुरू हो चुकी है।
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