एक समाजसेवी की कलम से
महासमुंद। भावी पीढ़ी मोबाइल और नशे के गर्त में जा रहे है।15 से 25 वर्ष तक के लगभग 80 प्रतिशत बच्चे व युवा दिशाहीन हो रहे हैं। खासकर ग्रामीण अंचलों में।दसवीं पास आऊट बच्चे ठीक से अपना नाम तक नहीं लिख पा रहे हैं।कक्षा दूसरी, तीसरी के बच्चे गुटखा खाने लगे हैं।बड़ी मुश्किल से दसवीं बारहवीं तक ही पढ़ लिख पा रहे हैं।वही अधिकतर बालिकाएं बारहवीं पास कर आसानी से उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही है। बच्चे मां बाप व बड़ों व गुरूजनो का कहना नहीं मान रहे हैं।मान सम्मान करना दूर की बात है।इस सबके पीछे कारण है मां बाप का लाड़-प्यार, संस्कार के बजाय शिक्षा को ज्यादा महत्व देना , आधुनिक जीवन शैली तथा सामाजिक वातावरण प्रतीत होता है।प्रायः अधिकतर लोग कम मेहनत में ज्यादा मुनाफा चाहते हैं।या शाटकट तरीके से लाभ कमाना चाहते हैं।जो विभिन्न अपराधों को जन्म दे रहा हैं।इस पर सरकार ,विद्वानों, राजनीतिक दलों,पालकों तथा समाजसेवियों को चिंतन करना चाहिए।और उचित हल निकालना चाहिए। क्योंकि समाज का
वातावरण दूषित होगा तो उसका प्रभाव सबको भुगतना पड़ेगा ।कोविड 19 यह संदेश देके गया है।पर समय निकलते ही लोग सब भूलते जा रहे हैं।